Sunday, March 14, 2010

लडाखच्या प्रकाशछटा





लडाख  फोटोंतून  भेटतं.  तेही  अगदी  कडकडून!  कारण  हे  प्रदर्शरस्ज्;न  पहात  असताना  आपण  जणू  लडाखमध्ये  पोहोचलेलो  असतो.  आत्माराम  परब  आणि  त्यांच्या  चमूने  भरवलेलं  प्रदर्शरस्ज्;न  लक्षात  राहतं  ते  अगदी  फोटोंच्या  ओळींसकट! स्मृती  कुळकर्णी
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कसे  असेल  लडाखतेथे  पासपोर्ट  न्यावा  लागतो  कावजा  चाळीस  डिग्री  सेंटीग्रेडमध्ये  तेथील  लोक  कसे  राहतातत्यांच्या  उपजीविकेचे  साधन  काय  इथपासून  ते  लडाख  चक्क  भारतात  येतंइथपर्यंत  प्रश्न  विचारणारे  लोक  आहेत.  या  सगळया  प्रश्नांची  उत्तरे  आपल्याला  'शेडस्  ऑफ  लडाख'च्या  प्रदर्शनामधून  मिळतात.
' शेडस्  ऑफ  लडाखहे  प्रदर्शन  वेड  लावणारे  आहे.  तेथील  फोटोग्राफ्स  बघताना  स्थळाकाळाचा  विसर  पडतो  आणि  आपण  पूर्णपणे  त्यातच  रमून  जातो.  हे  प्रदर्शन  नुकतंच  एनसीपीए  येथील  'पिरॅमल  आर्ट  गॅलरीत  पार  पडलं.  या  प्रदर्शनामध्ये  नेमके  काय  असेल  याचा  विचार  करत  आपण  जेव्हा  आत  प्रवेश  करतो  तेव्हा  पटकन  समोर  येतो  तो  बुध्दाचा  हसरा  फोटो.  त्या  फोटोकडे  बघत  असतानाच  लडाखच्या  स्थानिक  वाद्याचे  सूर  कानी  पडतात.  ते  मंद  सूर  मग  आपल्याला  संपूर्ण  प्रदर्शनभर  साथ  देत  असतात.  छतावर  फडकणारे  लडाखचे  रंगीबेरंगी  झेंडे  आपले  लक्ष  वेधून  घेत  असतानाच  लडाख  परिसराचा  मॅप  आणि  फोटोग्रार्फ्सचा  थोडक्यात  परिचय  लावलेला  दिसतो.  लडाखबद्दल  अधिक  माहिती  जाणून  घ्यायला  उत्सुक  असणाऱ्या  लोकांना  माहिती  देण्याकरिता  स्वत:  आत्माराम  परब  सामोरे  येतात.  त्यांच्याकडून  लडाखचे  एकूणच  अनुभव  आणि  प्रदर्शनाबद्दल  माहिती  घ्यायला  गेल्यावर  पहिल्यांदा  एकच  वाक्य  ऐकायला  मिळते.  लडाख  म्हणजे  आश्चर्यच  आहे!  ते  पुढे  म्हणतात,  ''भारतातील  हा  एकमेव  भाग  असा  आहे  जिथे  आपण  एकाच  वेळेला  वाळवंटातील  कोरडी  वाळूहिरवीगार  झाडेबर्फासारखी  थंड  नदीडोंगर  आणि  डोंगराच्या  शिखरावरील  बर्फ  बघू  शकतो.  निसर्गाचा  हा  चमत्कार  आपल्याला  स्तंभीत  करतो.  श्वास  रोखायला  भाग  पाडतो.  किती  फोटो  काढू  आणि  किती  नको  असे  होते.''


या  प्रदर्शनाचे  निमित्त  होतेगिर्यारोहक  आणि  प्रकाशचित्रकार  आत्माराम  परब  यांच्या  नेतृत्वाखाली  'वॉन्डरर्सया  संस्थेमार्फत  हितेंद्र  सिनकरसर्वेश  जोशीमकरंद  जोशीअजय  कुळकर्णीशेहजाद  आरसीवालाअपर्णा  भट्टेराजेश  पितळेरुचिरा  राव  आणि  मेघन  पाटणकर  या  हौशी  फोटोग्राफर्सनी  केलेल्या  लडाखवारीचे!  गेल्या  वर्षी  15  ऑगस्ट  रोजीलडाखमध्ये  स्वातंत्र्यदिन  साजरा  करणे  आणि  'टाक-  थोकया  बौध्द  मठाच्या  उत्सवास  भेट  देण्याचे  ठरवून  त्यांनी  लडाखला  भेट  दिली  होती.  यांच्या  निवडक  फोटोंचे  प्रदर्शन  पिरॅमलमध्ये  भरवण्यात  आले  होते.
फोटो  बघत  असताना  लडाखबद्दल  बरेच  जाणून  घ्यायची  इच्छा  असते  आणि  आपल्या  मनातील  हे  विचार  ओळखून  आत्माराम  परब  बोलू  लागतात,  ''लडाखचा  प्रवास  'मुंबई  ते  मुंबई  व्हाया  लडाखअसा  गृहीत  धरला  तर  तो  17  दिवसांचा  आहे.  मनाली  ते  लडाख  हा  475  कि.  मी.चा  प्रवास  जीपने  केला  जात  असून  हा  प्रवास  करण्यासाठी  तीन  दिवस  लागतात.  कारण  तो  परिसर  एवढा  सुंदर  आहे  की  फोटोकरिता  इथे  जीप  थांबवू  की  तिथे  असे  होते.  साधारण  पाच  ते  सहा  जण  एका  जीपमध्ये  असतात.  आम्ही  विविध  ठिकाणी  जीप  थांबवून  फोटो  काढले  असल्यामुळे  लडाखच्या  फोटोग्राफ्समध्ये  प्रचंड  विविधता  दिसते.  या  तीन  दिवसांत  साधारण  18,300  फूट  उंच  जात  असताना  सार्चू  हे  ठिकाण  लागते.  हे  ठिकाण  अतिशय  सुंदर  असून  याच  प्रवासादरम्यान  आपल्याला  झंस्कार  आणि  सिंधू  नदीचा  संगम  बघायला  मिळतो.''  या  संगमाचा  एक  अप्रतिम  फोटोग्राफ  तेथील  प्रदर्शनात  लावलेला  दिसतो.आत्माराम  परब  सांगतात,  ''तेथील  नदीत  राफ्टिंग  करता  येते.  साधारण  साडेतीन  तासांचा  सुंदर  आणि  अतिशय  शांत  असा  हा  प्रवास  असून  या  दोन्ही  नद्यांच्या  तापमानामध्ये  साधारण  10  ते  12  डिग्री  सेंटीग्रेडचा  फरक  असतो.''
लडाखच्या  प्रवासादरम्यान  'चांग  ला  पासहे  17600  फुटांवरील  अतिशय  सुंदर  ठिकाण  लागत  असून  त्या  ठिकाणी  अनाघ्रात  निसर्ग  दिसून  येतो.  बौध्द  धर्माच्या  खुणा  बाळगणारे  बौध्द  मठत्यांचे  पारंपरिक  उत्सवजगातील  एकमेव  मूनलॅण्ड  (चंद्राच्या  पृष्ठभागाप्रमाणे  असलेली  भूमी)वैराण  वाळवंट  आणि  त्याचबरोबर  उत्तुंग  पर्वतराजींवर  दिसणारी  बर्फाच्छादित  हिमशिखरेप्रतिकूल  परिस्थितीचा  सामना  करत  आपले  जीवन  जगणारी  कणखर  मनोवृत्तीची  उत्सव  प्रिय  लडाखी  माणसेत्यांचे  रक्षण  करणारे  भारतीय  सैनिकअशी  अनेक  वैशिष्टये  लडाखच्या  सहलीदरम्यान  अनुभवायला  मिळतात.लडाखमधील  पर्यटन  आणि  प्रदर्शनाबद्दल  सांगताना  आत्माराम  परब  सांगतात,  ''खडतर  प्रवास  आणि  ऑक्सिजनचे  प्रमाण  35  टक्क्यांनी  कमी  असल्यामुळे  तेथील  पर्यटन  अगदी  टिचभरच  आहे.  तेथील  पर्यटन  वाढावेआमच्या  दर्जेदार  फोटोंच्यामाध्यमातून  लडाखमधील  दुर्लक्षित  पर्यटनस्थळेविविध  संस्कृतीउत्सवस्थापत्यकला  आणि  ऐतिहासिक  वस्तूंची  माहिती  सर्वसामान्यांपर्यंत  पोहोचावी  आणि  त्याचबरोबर  हौशी  फोटोग्राफर्सना  या  प्रदर्शनामधून  व्यासपीठ  उपलब्ध  करून  देण्यासाठी  हे  प्रदर्शन  आयोजित  केले  होते.''

200
  किंवा  400  आयएसओची  फिल्म  वापरून  काढलेल्या  काही  फोटोग्राफ्समध्ये  आलेले  ग्रेन्स  चाक्षण  फोटोग्राफर्सच्या  नजरेतून  सुटत  नाहीत.  फोटोग्राफीबाबत  सांगताना  आत्माराम  परब  म्हणतात,  ''लडाखला  डिजीटल  कॅमेरा  नेणे  केव्हाही  चांगले.  त्यामुळे  किती  फोटो  काढावे  यावर  बंधन  राहात  नाही.  पण  तरीही  एसएलआर  कॅमेऱ्याने  क्लिक  केलेल्या  फोटोंची  गंमतच  काही  वेगळी  असते.  एसएलआर  नेल्यास  कमीत  कमी  20  ते  25  रोल  नेणे  गरजेचे  आहे.  कारण  तेथे  फोटोग्राफीकरिता  खूप  स्कोप  असून  तेथे  100  आयएसओची  फिल्म  वापरणे  अतिशय  चांगले.''
त्या  प्रदर्शनातील  सगळेच  फोटोग्राफ्स  एकापेक्षा  एक  सुंदर  असले  तरीही  त्यातील  काही  फोटोंसमोर  आपले  पाय  जरा  जास्तीच  रेंगाळतात.  ते  फोटो  बघत  मनातल्या  मनात  आपण  फोटोग्राफरला  दाद  देऊन  जातो.  यामध्ये  खास  आवर्जून  दखल  घेण्याजोगे  काही  फोटोग्राफ्स  म्हणजेआत्माराम  परब  यांनी  'विथआऊट  वरी  इन  द  वर्ल्डहा  बर्डस्  आय  व्ह्यूने  शेतांच्या  तुकडयांचा  टिपलेला  हिरवेपणा.  तसेच  अजय  कुळकर्णी  यांचा  शिखरांवर  पडलेल्या  उगवत्या  सूर्याच्या  किरणांचा  फोटो;  'पेंटिंग  इन  प्रोग्रेस'.  हा  फोटोग्राफ  अप्रतिम  आहे.  पांढऱ्या  बर्फाच्छादित  डोंगरातून  वाट  काढत  गेलेला  काळाकूट्ट  रस्त्याचा  'व्हाईट  मॅजीकनावाचा  राजेश  पितळे  यांचा  फोटोग्राफही  खिळवून  ठेवतो.  अपर्णा  भट्टे  यांचा  'वाँट  टू  एक्स्चेंज  माय  बॅगपॅक?',  हितेंद्र  सिनकर  यांचे  'स्ट्रेच  टू  लिमिट',  'अलोन  बट  नॉट  लोनलीयाबरोबरच  फत्तच्  एका  प्रेच्ममध्ये  पकडलेली  एक  अतिशय  सुंदर  संध्याकाळ  'ऍन  इव्हेनिंग  टू  रिमेंबरहे  फोटो  आपल्याला  दंग  करून  जातात.  मेघन  पाटणकर  यांचा  'फेथ  टचेस  न्यू  लाईटस',  शेहजाद  आरसीवाला  यांचा  पॅनगाँग  लेकचे  प्रतिबिंब  असलेला  फोटोहे  एकपेक्षाएक  उत्कृष्ट  फोटोग्राफ्स  या  प्रदर्शनात  बघायला  मिळतात.  या  प्रदर्शनामध्ये  असलेला  मूनलॅण्डचा  फोटो  लोकांना  मूनलॅण्डची  भव्यता  समजावी  म्हणून  सहा  प्रेच्म  एकत्र  करून  बनवलेला  आहे.  या  प्रदर्शनाचे  वैशिष्टय  म्हणजेत्या  प्रदर्शनातील  फोटोंना  दिलेल्या  ओळी  नंतरही  बऱ्याच  वेळ  आपल्या  मनात  रेंगाळत  राहतात.  लडाखमध्ये  फोटोग्राफ्स  काढताना  फोटोग्राफर्सना  सूर्यप्रकाश  आणि  ढगांच्या  सावलीचा  (लाईट  ऍण्ड  शॅडो)  अद्भुत  खेळ  अनुभवायला  मिळतो.  लडाखमधील  98  टक्के  जनता  बौध्द  असून  तेथील  लोक  शांतताप्रिय  आहेत.  तेथे  अतिरेकी  आणि  दहशदवाद  नाही.  लडाखमध्ये  5.30  वाजता  उजाडत  असून  तेथे  सूर्यास्तही  उशिरा  होतो.  थंडीत  तेथील  तापमान  वजा  चाळीस  डिग्रीपर्यंत  जात  असल्यामुळे  घरावर  छ)पर  लावण्याआधी  साधारण  पाच  ते  सहा  फुटांचा  लाकडांचा  थर  रचून  मग  छ)पर  लावले  जाते.  हा  फोटोग्राफही  त्या  प्रदर्शनात  बघायला  मिळतो.'या  प्रदर्शनामधील  आत्माराम  परब  यांचा  स्वत:चा  आवडता  फोटो  कोणता?'  असे  त्यांना  विचारले  असता  ते  लगेच  'लाईट  प्रचॅम  हेवनया  फोटोकडे  कटाक्ष  टाकतात  आणि  गालातल्या  गालात  हसत  सांगतात,  ''एकदा  बेस  कॅम्पला  जाण्याकरिता  18  कि.  मी.  चालत  जावे  लागले.  13  हजार  फुटांवरील  सात  तासांचा  सलग  चालत  केलेला  तो  प्रवास  प्रचंड  थकवून  गेला  आणि  बेस  कॅम्पला  पोहोचल्यावर  तंबूत  आराम  करत  पडलेलो  असताना  मला  डोंगरावर  पडलेले  अप्रतिम  उन्हाचे  कवडसे  दिसले.  पण  तंबूच्या  बाहेर  येऊन  फोटो  काढण्याइतकेही  त्राण  माझ्यात  नव्हते.  अशा  वेळी  मी  त्याच  अवस्थेत  झोपून  तो  फोटो  काढला  आहे.''
आत्माराम  परब  हे  कस्टममध्ये  काम  करत  असून  त्यांना  नेचर  आणि  वाईल्डलाईफ  फोटोग्राफीची  प्रचंड  आवड  आहे.  गेली  वीस  वर्षे  ते  या  क्षेत्रात  असून  हे  त्यांचे  तिसरे  प्रदर्शन  आहे.  आत्तापर्यंत  लडाखला  ते  अनेक  वेळा  जाऊन  आले  असले  तरीही  दर  भेटीत  त्यांना  लडाखचे  नवे  सौंदर्य  दिसत  असल्यामुळे  लडाख  त्यांना  सतत  खुणावत  राहतो.

journalist.smruti@gmail.com





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